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दुनिया भर में घट रही है मानव वीर्य की गुणवत्ता

decline in sperm counts

29 साल के रजत यादव(परिवर्तित नाम) की शादी 2017 में हुई थी। उन्हें पुरुषों में होने वाले बाँझपन की शिक़ायत है। उन के डॉक्टर ने उन्हें बताया कि तनाव और धूम्रपान की आदत की वजह से ही उन्हें स्वास्थ्य से जुड़ी जटिलताएँ हैं। उन्होंने अपने डॉक्टर को बताया कि पत्नी नीना यादव(परिवर्तित नाम) के साथ शारीरिक अंतरंगता में भी परेशानी आ रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 8500 से अधिक जोड़ों पर किए गए अध्ययन से पता चला कि 51.2 प्रतिशत बाँझपन के शिकार हैं यानी उन की प्रजनन क्षमता कम है।

1996 में छपी विश्व स्वास्थ्य रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 60 से 80 मिलियन युगल जोड़े हर साल बाँझपन से प्रभावित हो रहे हैं। इस ने भारत में भी बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित किया है। लगभग 15 से 20 मिलियन जोड़े इस से प्रभावित हैं और इस की मौजूदा दर लगभग 23 प्रतिशत है।

भारत में स्थिति:

नोएडा के Jaypee अस्पताल में IVF विशेषज्ञ और स्त्रीरोग के लिए वरिष्ठ परामर्शक डॉ. श्वेता गोस्वामी ने द हेल्थ को बताया कि इस में कोई दो राय नहीं कि भारत में पुरुषों में वीर्य की गुणवत्ता कम होती जा रही है। मैं हर रोज़ ऐसे मामले देखती हूँ जिन में पुरुषों में बाँझपन की समस्या बढ़ रही है। एक दशक में ऐसे मामले बहुत बढ़ गए हैं। एक दिन में मैं बाँझपन के लगभग तीस से चालीस मरीज़ देखती हूँ। दुनिया भर में दवाओं का बढ़ता उपयोग, धूम्रपान, शराब और सही भोजन ना खाना इस की एक बड़ी वजह है।

डॉ. गोस्वामी ने बताया कि कृत्रिम गर्भाधान या IVF इस का पहला समाधान नहीं है। सबसे पहले तो लोगों को अपनी आदतें और जीवनशैली बदलनी होंगी। उन्हें सही भोजन खाना होगा, रोज़ शारीरिक गतिविधियाँ करनी होंगी, तनाव कम करना होगा, वज़न सही रखना होगा, विषैले तत्वों से दूर रहना होगा, शराब और धूम्रपान की आदत भी छोड़नी होगी।

डॉ. गोस्वामी ने ये भी कहा कि इन दिनों युवा कर्मियों के काम करने के घण्टे बहुत बढ़ गए हैं। उन पर अपने लक्ष्यों को पूरा करने का दबाव भी रहता है।

2017 में एक meta-regression विश्लेषण किया गया था जो 42,935 पुरुषों पर हुए 185 अध्ययनों पर आधारित था और इस में एशिया को भी शामिल किया गया था।

इन पुरुषों ने 1973 से 2011 के बीच वीर्य के नमूने उपलब्ध करवाए थे। इस व्यापक विश्लेषण में पुरुषों की शुक्राणु गणना में पचास से साठ प्रतिशत की कमी पाई गई थी। Sperm Concentration (SC) और Total Sperm Count (TSC) ने ये गणना की थी।

नई दिल्ली में शांता फर्टिलिटि सेंटर से IVF और स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. अनुभा सिंह ने कहा कि हमने देखा है कि इन मामलों में बहुत बार युगलों की जीवनशैली शिथिल है। अधिकतर लोग कम्प्यूटर और लैपटॉप के सामने काम करते हैं और आसानी से मिलने वाला जंक फूड खाते रहते हैं। इस वजह से वे मोटापे का शिकार होते हैं। खान-पान की सही आदतों के अभाव की वजह से भी महिलाओं या पुरुषों में एक तरह का बाँझपन पैदा होता है।

वीर्य गुणवत्ता के बारे में शोध:

नोट्टिंघम विश्वविद्यालय में मार्च 2019 में छपे एक शोध में पाया गया कि मानव और पालतू कुत्तों में दो एक जैसे रसायन वीर्य गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं। ये दो पर्यावरणीय रसायन हैं diethylhexyl phthalate (DEHP) और  polychlorinated biphenyl 153 (PCB153).

Polychlorinated biphenyls (PCBs) पर्यावरण में मौजूद प्रदूषक है और Diethylhexyl-phthalate (DEHP) एक ऐसा तत्व है जो मुख्य रूप से प्लास्टिक में मिलाया जाता है ताकि उसे और लचीला बनाया जा सके।

रिपोर्ट में नोट्टिंघम विश्वविद्यालय के चिकित्सकों ने बताया कि DEHP and PCB153 दोनों ही पर्यावरण में फैले हुए हैं और माँ के दूध से लेकर भेड़ के समान लीवर के ऊतकों तक में पाए गए हैं।

DEHP प्लास्टिक से साथ इस्तेमाल होने वाला एक ऐसा तत्व है जो भोजन और तरल पदार्थों में भी पहुँच जाता है और PCBs वसारागी है जो चरबीदार भोजन में मिलता है।

वैश्विक परिदृश्य:

पश्चिमी दुनिया में क्षेत्रीय विभिन्नताओं के साथ पिछले पाँच दशकों में वीर्य की गुणवत्ता लगातार कम होती आ रही है। इन रुझानों के पीछे के कारण आसान नहीं है लेकिन बहुत से आकलन इशारा करते हैं कि पर्यावरण और जीवनशैली का बहुत ज़्यादा असर पड़ता है।

1992 में Carlsen et al. द्वारा मानव वीर्य की घटती गुणवत्ता के बारे में किए गए शोध ने व्यापक बहस छेड़ दी थी। कार्लसेन के शोध के अनुसार पिछले पचास सालों से वीर्य की गुणवत्ता में कमी आती जा रही है। इस की वजह से विवाद छिड़ गया था क्योंकि इस संदर्भ में बहुत सीमित शोध थे।

1992 से वीर्य की गुणवत्ता और इस में आती कमी के बारे में बहुत से अध्ययन किए जा रहे हैं। जेनेवा विश्वविद्यालय, स्विट्ज़रलैंड में जेनेटिक औषधि और विकास विभाग द्वारा हाल ही में किया गया अध्ययन साबित करता है कि शुक्राणु संख्या में कमी आई है।

स्विस अध्ययन बताता है कि प्रजनन क्षमता वाले पुरुष के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बताए गए संदर्भ के पाँचवे प्रतिशतक से तुलना करने पर 17 प्रतिशत पुरुषों के वीर्य का गाढ़ापन 15 मिलियन/मिलिलीटर, 25 प्रतिशत के शुक्राणु की गतिशीलता 40 प्रतिशत से कम और 43प्रतिशत की सामान्य चार प्रतिशत से भी कम थी।

शुक्राणु की घटती संख्या से मृत्यु दर और मृत्यु संख्या के बढ़ते कारणों का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। ये क्रिप्टॉर्किडिज़म, hypospadias या अधोमूत्रमार्गता और टेस्टीकुलर कैंसर से भी जुड़ा है। जीवनशैली से जुड़े कारक जैसे कि खान-पान, तनाव, धूम्रपान और पर्यावरण से जुड़े बहुत से कारक और परेशानी जनक अंत:स्रावी रसायनों की वजह से शुक्राणु गणना में कमी आती है।

शुक्राणु में कमी की वजह से पुरुषों में होने वाले बाँझपन के लक्ष्ण हो सकते हैं:

  • यौन क्रिया में समस्या
  • वीर्यकोष में सूजन या गाँठ
  • बार-बार साँस से जुड़ा संक्रमण होना
  • चेहरे या शरीर के बालों में कमी
  • शुक्राणु गणना में कमी
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Lifestyle Medical Research News World Health

A Study: Human Semen Quality Continues To Decline Globally

semen quality decline

Rajat Yadav (name changed) 29, married in 2017. He is diagnosed with male infertility issue. His doctor tells him that stress and his smoking habits are the major reasons for his health complications. He also revealed to his doctor that physical intimacy was not sound with his wife Neena Yadav (name changed).

The World Health Organisation(WHO) study conducted upon more than 8500 couples noted that 51.2 per cent suffered from infertility. According to The World Health Report 1996, infertility is affecting 60-80 million couples every year around the globe. It has also affected a huge numbers of approximately 15-20 million couples in India with the prevalence rate around 23 per cent.

Scenario In India:

“Semen quality is definitely declining among men in India. In my day-to-day practice, I see a lot of cases where the problem of infertility in men is growing. There is a huge rise of such cases within a decade. I attend almost 30-40 patients of infertility in a day. The lifestyle like increased use of drugs, smoking, alcohol and unhealthy food is the common factor around the world,” Dr. Shweta Goswami, Sr. Consultant gynecologist and IVF Expert from Jaypee Hospital, Noida told TheHealth.

“Going for and artificial insemination or IVF is not the first solution to it. People need to change their habits first by eating right, including physical activity in daily routine, reducing stress, managing weight, avoiding exposure to toxins, quitting smoking and alcohol consumption,” said Dr Goswami adding that these days erratic timing of work and pressure of target completion is seen more among young professionals.

A meta-regression analysis, including Asia, was done in 2017 based on 185 studies of 42935 men who provided semen samples in 1973–2011. This comprehensive analysis reported a significant 50–60% decline in sperm counts among men as measured by Sperm Concentration (SC) and Total Sperm Count (TSC).

“Many a time we have seen these cases of working couples leading a sedentary lifestyle, mostly working on computers and laptops, on an ease to consume junk foods which further results in obesity, due to unhealthy food habits, also leads to male or female subfertility”, said Dr Anubha Singh, Gynecologist and IVF Expert from Shantah Fertility Centre, New Delhi.

Researches On Semen Quality:

A study published in March 2019 at Nottingham University found two common chemicals affecting the sperm quality of human and dog (dogs that live in the human household). These two environmental chemicals are diethylhexyl phthalate (DEHP) and polychlorinated biphenyl 153 (PCB153).

Polychlorinated biphenyls (PCBs) are persistent environmental pollutants. Diethylhexyl-phthalate (DEHP) is a substance that is mainly used as an additive in plastics to make them more flexible.

“Both DEHP and PCB153 are widely present in the environment and have been detected in tissues/fluids ranging from human breast milk to ovine liver. DEHP is a widely used plasticizer that leaches out into food and liquids and PCBs are lipophilic, and are therefore present in fatty foods,” doctors at Nottingham University stated in the report.

Global Scenario:

Sperm counts have been steadily decreasing over the past five decades with regional differences in the Western world. The reasons behind these trends are complex, but numerous insights indicate that environmental and lifestyle factors are important players.

A study done by Carlsen et al. (1992) on the decline of human sperm counts started a huge debate. Carlsen study stated, “There has been a genuine decline in semen quality over the past 50 years.” It created a controversy because there were limitations in studies.

Since 1992, there has been a number of studies on sperm quality and its decline. The recent study done by the Department of Genetic Medicine and Development, University of Geneva, Switzerland proved that there is a decline in sperm counts.

Swiss study states, “Comparing with the 5th percentile of the WHO reference values for fertile men, 17% of men had sperm concentration below 15 million/mL, 25% had less than 40% motile spermatozoa, and 43% had less than 4% normal forms”.

Study proves that reduced sperm count predicts increased all-cause mortality and morbidity. It is also associated with cryptorchidism, hypospadias and testicular cancer.

Lifestyle factors, diet, stress, smoking with multiple environmental influences, including endocrine disrupting chemicals causes decline in sperm count.

The signs and symptoms of male infertility caused by ‘sperm count decline’ may include:

  • Problems with sexual function
  • Swelling or a lump in the testicle area
  • Recurrent respiratory infections
  • Decreased facial or body hair
  • Having a lower sperm count
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