लीची विवाद की वजह से पंजाब के लीची किसान फँस सकते हैं कर्ज़ के जाल में
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्- मुशहरी, रमना, मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार के लिए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र ने जम्मू और कश्मीर, पंजाब तथा हिमाचल के लिए एक अधिसूचना जारी की है कि इन सभी राज्यों में लीची खाना सुरक्षित है।
पंजाब के पठानकोट में लीची किसान राकेश डडवाल ने कहा कि मेरे पास सत्तर एकड़ का लीची का खेत है। दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और हरियाणा की फल मंडियों में मेरे ऑर्डर मना किए जा रहे हैं। इससे मुझे साठ से सत्तर लाख का नुक़्सान होगा। हम दूसरी मंडियों में लीची भेजने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन लगभग हर जगह से ऑर्डर वापिस भेज दिया गया है। बाहरी कारणों की वजह से खेती वैसे भी मुश्किल है। अगर लीची की क़ीमतें नहीं बढ़ीं तो किसान कर्ज़ के जाल में फँस जाएंगे।
अधिसूचना में कहा गया है कि बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में 150 से अधिक बच्चों की मृत्यु का कारण हो सकने वाले Acute Encephalitis Syndrome (AES) और लीची का कोई संबंध नहीं है। पंजाब, जम्मू और कश्मीर तथा हिमाचल की लीची में कोई हानिकारक तत्व नहीं है और ये खाने के लिए सुरक्षित है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्- मुशहरी, रमना, मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार के लिए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के निदेशक विशाल नाथ ने द हेल्थ को बताया कि हमारे पड़ौसी देश हमारे फलों और सब्ज़ियों पर प्रतिबंध लगा रहे हैं। वे अब अतिरिक्त सर्टिफ़िकेट भी माँग रहे हैं जबकि इस बात के पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि लीची ही AES का कारण है। हमारी सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली लीची को भी देश के भीतर और बाहर लोग ठुकरा रहे हैं।
भारत दुनिया में चीन के बाद लीची का दूसरे नम्बर का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में 56,200 हेक्टेयर भूमि से हर साल 428,900 मेट्रिक टन लीची का उत्पादन होता है। लीची मुख्य रूप से बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और झारखंड से आती है तथा कुछ उत्पादन त्रिपुरा, पंजाब, उत्तराखंड और ओडिसा में भी होता है।
लीची भारत में लाखों लोगों की आजीविका है क्योंकि ये खेतों में काम करने वाले और खेतों से बाहर काम करने वाले लोगों को रोज़गार प्रदान करती है। ये भारत में गर्मियों में सबसे ज़्यादा पसंद किए जाने वाले और खाए जाने वाले फलों में से एक है।
पंजाब के एक लीची किसान, अजय मखोत्रा का कहना है कि हमें 19 जून 2019 से पहले आज़ादपुर मंडी में दस किलो लीची की क़ीमत 800-900 रुपये मिल रही थी लेकिन अगली सुबह ही दस किलो लीची की क़ीमत घटकर 400-500 रुपये रह गई। लीची विक्रेताओं ने पंजाब से भी लीची ख़रीदनी बंद कर दी है। मेरे पास लीची की 1500 पेटियाँ रखी हैं जिनकी क़ीमत 20 से 22 लाख रुपये है। दो-तीन दिनों में ये ख़राब होनी शुरू हो जाएंगी। बिहार में बच्चों की मृत्यु के लिए लीची को ग़लत रूप से ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है।
लीची किसानों का कहना है कि एक बार मुज़फ़्फ़रपुर से आई लीची ख़त्म हो जाती है तब पंजाब की लीची फल बाज़ार में आती है। लेकिन दिल्ली की आज़ादपुर मंडी जैसी बड़ी फल मंडियों में पंजाब और देहरादून की लीची को भी ठुकराया जा रहा है।
पंजाब के एक और लीची किसान अभय प्रताप सिंह का कहना है कि मुझे लीची का अपना स्टॉक तीस रुपये किलो के हिसाब से बेचना पड़ा। 30-35 रुपये प्रति किलो तो हेंडलिंग यानी कि लीची के प्रबंधन और रख-रखाव का ही ख़र्च होता है। अगर लीची की क़ीमतें नहीं बढ़ती हैं तो हमारा हेंडलिंग ख़र्च भी नहीं निकल पाएगा। 700-800 किलो लीची का मेरा एक स्टॉक पहले ही ख़राब हो चुका है। अभी भी मेरे पास 8000 से 9000 किलो लीची का स्टॉक है जो फल बाज़ार में भेजना है। मेरा 35 से 40 लाख का नुक़्सान हो जाएगा।
नई दिल्ली स्थित एम्स के चिकित्सकों का एक दल प्रोग्रेसिव मेडिकॉज़ एंड साइंटिस्ट फ़ोरम (PMSF) के हिस्से के तौर पर आपदा की जाँच और इसके कारण जानने के लिए मुज़फ़्फरपुर भेजा गया। चिकित्सकों द्वारा कारण जानने के लिए नमूने भेजे जा चुके हैं। अभी भी इस आपदा का असल कारण जानना बाकी है।