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Conditions of Doctors in Government Hospitals of India

Conditions of Doctors in Government Hospitals of India

In May 2017 on a hot summer day, Dr Birender Kumar, was on duty at the casualty of Sanjay Gandhi Hospital in Delhi. It was his dream to work in a government set up.

But his dream was broken, when he along with his fellow doctors were manhandled and assaulted by family members of a patient who died because of illness.

“Medical investigations, treatment and medicines are free of cost at government hospitals in India. If we ask patient to get any kind of diagnostic test done from outside hospital, which is not available, they think that we have some vested interest. In that case, hospital administration should put a display that medical tests are not available. This can avoid incident of assault on doctors.”

Dr Sandanshiv

This incident left Dr Kumar in depressing condition. He resigned from his job and returned to his home town in Bihar.

Dr Kumar is not alone who has suffered physical assault by patients’ attendant at government medical institutions. The list of such cases is endless.

Innumerable daily incidents of violence against doctors are reported across India. Some results in grievous injuries. Even All India Institute of Medical Sciences (AIIMS), the premier medical institute of the country, faces such cases of violence.

According to a study done by the Indian Medical Association (IMA), over 75 percent of doctors have faced violence at work.

Doctors who experience violence slip into depression, develop insomnia, post-traumatic stress, fear and anxiety causing absenteeism.

In India, security at workplace has always been a major concern for doctors and medical staff. There are other important issues which are the reasons of worry for doctors.

It includes Doctor- patient ratio, limitation of resources and infrastructure, erratic working hours, no proper referral system of patients and lack of vigilant security.

Narrating his horrifying experience, Dr Kumar told TheHealth, “I still remember that day when the patient was brought to the emergency of Sanjay Gandhi Hospital in a critical condition. We took the case and started medical treatment, however,  the patient succumbed due to health complications. When we informed the demise of the patient, about 20-25 attendants of the deceased attacked on us. We were held hostage in the casualty. They broke my hand and this incident left me in fear and depressing condition. Then, I decided to quit my job at the hospital and came back at my hometown in Bihar.”

Dr Kumar is a pediatrician. Presently, he runs his own clinic in Samastipur, Bihar. “Atleast, my life is not at risk. Nobody is beating me. Soon, after my resignation, seven doctors left the hospital due to life threat and adverse working condition,” he said.

Dr Sumedh Sandanshiv, President of Federation of Resident Doctors’ Association (FORDA) said: “Most of the government hospitals in India lack basic healthcare facilities. And that too when hospitals are over burdened with patients. This has created a huge gap in doctor-patient ratio. It is leading to shortage of doctors in government healthcare set up. There are times, when we work for continuous 48 hours, and we get exhausted. Sometimes, it disturbs the doctor-patient relationship.”

Doctors deputed at government hospitals say that it is not so easy to work in a government set up.

The increasing incident of physical assault on doctors has created a fear in their mind. Due to which, most of the young doctors are moving to  the private sector.

“In the past couple months, four doctors were brutally attacked by patients’ relative at RML hospital. We have security personals at the hospital, but I think it is not enough to manage,” said Dr Sandanshiv.

“The most important step in preventing violence at hospital is managing the entry of large number of patients’ relatives. Strengthening medical infrastructure and improving communication skills of staff at hospital will help in maintaining patient friendly environment”, said Dr Manish Nigam, General Secretary, FORDA.

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भारत के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की स्थिति

मई 2017 की गर्मियों का एक तपता दिन। डॉ. बिरेन्द्र कुमार दिल्ली के संजय गाँधी अस्पताल के आपातकालीन विभाग में ड्यूटी पर थे। सरकारी व्यवस्था में काम करना उन का सपना था। लेकिन उन का ये सपना उस समय टूट गया जब उन के साथ और उन के सहयोगी चिकित्सकों के साथ एक रोगी के परिजनों ने मार-पिटाई की। उस रोगी की बीमारी की वजह ये मृत्यु हो गई थी। इस घटना ने डॉ. कुमार को बहुत निराश किया। उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया और अपने राज्य बिहार लौट गए।

डॉ. कुमार ऐसे इकलौते चिकित्सक नहीं हैं जिन के साथ सरकारी चिकित्सा संस्थान में मरीज़ो के परिजनों ने मार-पिटाई की हो। ये सूची बहुत लंबी है।

भारत में चिकित्सकों के साथ हाथा-पाई और मार-पिटाई के रोज़ बहुत से मामले दर्ज होते हैं। कुछ तो बहुत ही गंभीर चोट के मामले होते हैं। यहाँ तक कि देश के प्रमुख चिकित्सा संस्थान, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान या एम्स में भी इस तरह के मामले सामने आते हैं। भारतीय चिकित्सा संगठन(IMA)  द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार 75 प्रतिशत से अधिक चिकित्सकों ने अपने कार्यस्थल पर हिंसा का सामना किया है।

जिन चिकित्सकों ने हिंसा का सामना किया है उन्हें अवसाद, अनिद्रा, भय और चिंता जैसी कई मानसिक तकलीफ़ें हुईं और वे काम पर भी नहीं जा सके।

भारत में कार्यस्थल पर चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा हमेशा चिंता का विषय रही है। चिकित्सक और भी कई अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों को लेकर चिंतित रहते हैं। जैसे कि चिकित्सकों और मरीज़ों का अनुपात, सीमित संसाधन और अवसंरचना, काम करने की बढ़ते घंटे, मरीज़ों को व्यवस्था की सही जानकारी न होना और सुरक्षा की कमी जैसे मुद्दे।

अपने भयानक अनुभव के बारे में डॉ. कुमार ने कहा कि मुझे अभी भी वो दिन याद है जब मरीज़ को संजय गाँधी अस्पताल के आपातकालीन विभाग में बहुत ही गंभीर अवस्था में लाया गया था। हम ने मरीज़ को देखा और उस का इलाज शुरू किया लेकिन फिर भी अपने रोग की गंभीर अवस्था की वजह से मरीज़ बच नहीं सका।

जब हम ने मरीज़ की मृत्यु की सूचना उस के परिजनों को दी तो लगभग 20-25 लोगों ने हम पर हमला कर दिया। हमें आपतकालीन विभाग में ही बंधक बना कर रखा गया। उन्होंने मेरा हाथ तोड़ दिया और उस घटना ने मुझे बहुत ही निराश कर दिया। मुझे अवसाद हो गया। फिर मैंने अस्पताल में अपनी नौकरी छोड़ कर अपने गृह नगर बिहार आने का फ़ैसला किया।

डॉ. कुमार एक शिशु रोग विशेषज्ञ हैं। अब वे समस्तिपुर, बिहार में अपना क्लिनिक चलाते हैं। उन्होंने कहा कि अब कम से कम मेरा जीवन तो ख़तरे में नहीं है। कोई मुझ पर हमला नहीं करता। मेरे इस्तीफ़े के तुरंत बाद अस्पताल में जान का ख़तरा होने और काम करने के ख़राब हालात की वजह से सात डॉक्टरों ने अस्पताल छोड़ दिया था।

स्थानिक चिकित्सक संगठन परिसंघ(FORDA) के अध्यक्ष डॉ. सुमेध संदानशिव ने कहा कि भारत में अधिकतर सरकारी अस्पतालों में मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है और वो भी तब जब अस्पतालों में मरीज़ों की ज़रूरत से ज़्यादा भीड़ है। इस वजह से चिकित्सक और मरीज़ अनुपात में बहुत ज़्यादा अंतर पैदा हो गया है।

सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था में चिकित्सकों की कमी होती जा रही है। कभी-कभी तो हम लगातार 48 घंटों तक काम करते हैं और हम बहुत थक जाते हैं। इस वजह से भी कई बार चिकित्सक और मरीज़ का रिश्ता ख़राब होता है।

सरकारी अस्पतालों में कार्यरत चिकित्सकों का कहना है कि सरकारी व्यवस्था में काम करना आसान नहीं है। डॉक्टरों पर लगातार होने वाले हमलों की घटनाओं से उन के मन में डर पैदा हो गया है। इस वजह से बहुत से युवा चिकित्सक निजी क्षेत्र में जा रहे हैं।

डॉ. संदानशिव ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मरीज़ों के परिजनों ने चार चिकित्सकों पर भयानक हमले किए हैं। अस्पताल में सुरक्षाकर्मी हैं लेकिन मुझे लगता है कि सही प्रबंधन के लिए इतना काफ़ी नहीं है।

उन्होंने कहा कि भारत के सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य जाँच, उपचार और दवाएँ मुफ़्त मुहैया करवाए जाते हैं। अगर हम मरीज़ों को अस्पताल में ना हो सकने वाली किसी तरह की जाँच अस्पताल के बाहर से करवाने के लिए कहते हैं तो उन्हें लगता है कि इस में हमारा कोई फ़ायदा है। ऐसे मामलों में अस्पताल प्रशासन को सूचना देनी चाहिए कि कुछ स्वास्थ्य परीक्षण अस्पताल में नहीं हो सकते।  इस से भी चिकित्सकों पर होने वाले हमलों की घटनाओं से बचा जा सकेगा।

स्थानिक चिकित्सक संगठन परिसंघ(FORDA) के महासचिव, डॉ. मनीष निगम ने कहा कि अस्पतालों में हिंसा की घटनाओं से बचने के लिए सबसे ज़रूरी है कि बड़ी संख्या में अस्पताल आने वाले मरीज़ों के परिजनों से जुड़े सही प्रबंध किए जाएँ। चिकित्सा अवसंरचना को मज़बूत करने और अस्पताल कर्मियों के संवाद कौशल को बेहतर बनाने से मरीज़ों के साथ दोस्ताना व्यवहार तैयार करने में मदद मिलेगी।

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