भारत में ई-सिगरेट के बारे में बहस हुई तेज़
भारत में आईसीएमआर यानी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने ई-सिगरेट पर पूर्ण प्रतिबंध की अनुशंसा की है। इस के बाद ई-सिगरेट के बारे में बहस तेज़ हो गई है। इस साल विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर आईसीएमआर ने इलैक्ट्रोनिक निकोटिन आपूर्ति व्यवस्था(ENDS) पर एक श्वेत पत्र जारी करते हुए कहा कि ENDS का इस्तेमाल सिगरेट पीने जितना ही हानिकारक है।
आईसीएमआर ने धूम्रपान करने वालों और धूम्रपान नहीं करने वालों के बीच ENDS के इस्तेमाल से संबंधित दुनिया भर में छपे लगभग 250 मेडिकल शोध पत्रों की समीक्षा की।
श्वेत पत्र के अनुसार ENDS या ई-सिगरेट को धूम्रपान से छुटकारा दिलाने वाले विकल्प के तौर पर देखा जाता है लेकिन सिगरेट पीने की आदत छुड़ाने वाले उपाय के रूप में इस की सुरक्षा और गुण अभी पूरी तरह स्थापित नहीं हुए हैं। सिगरेट के प्रयोग में कमी या स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों को कम करने या तंबाकू वाले धूम्रपान की आदत छुड़ाने में मदद करने के संदर्भ में इस के बहुत ही सीमित उदाहरण मिलते हैं।
द हेल्थ.टुडे ने भारत में ENDS पर जारी श्वेत पत्र के बाद वेपर्स संगठन के निदेशक सम्राट चौधरी का साक्षात्कार किया और उन से इस बारे में कुछ सवाल किए।
प्रश्न1: आईसीएमआर द्वारा श्वेत पत्र जारी किए जाने के बारे में आपकी क्या राय है?
आईसीएमआर ने संतुलित अध्ययन नहीं किया है। ऐसे अध्ययन भी हुए हैं जिन में ई-सिगरेट को नुक्सान कम करने वाला साधन बताया गया है। ऐसा कैसे हो सकता है कि उन अध्ययनों को आईसीएमआर की समीक्षा में शामिल नहीं किया जाए।
उन्होंने ऐसे देशों में छपे पत्रों का अध्ययन किया है जिन में ई-सिगरेट पर प्रतिबंध नहीं है। उन अध्ययनों के आधार पर वे अपने देश में प्रतिबंध का प्रस्ताव कैसे रख सकते हैं। ई-सिगरेट के लिए नियम तय करने के लिए हम शोध किए जाने की सराहना करते हैं लेकिन ये संतुलित शोध होना चाहिए। आईसीएमआर ने समीक्षा के लिए ऐसे ही अध्ययन चुने हैं जो वेप्स या ई-सिगरेट को ख़तरा बताते हैं।
प्रश्न 2: विशेषज्ञों का कहना है कि दीर्घकालीन अध्ययन के बिना ये कहना आपत्तिजनक है कि ‘ई-सिगरेट का कोई नुक्सान नहीं है’। आपका इस विषय में क्या कहना है?
बीस साल जाँच किए बिना कोई दवाई जारी नहीं की जाती। वेप्स की पिछले कुछ सालों में क्लिनिकल जाँच की गई है। भारत में तंबाकू से हर रोज़ दस लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो रही है। क्या हमें वेप के दीर्घकालीन प्रभावों के बारे में बीस साल से अधिक इंतज़ार करना चाहिए जबकि इस समय के दौरान और लाखों लोग मौत के जाल में फँस चुके होंगे।
जन स्वास्थ्य इंग्लैंड और अमरीकी कैंसर सोसायटी दोनों ने कहा है कि हम वैपर उपकरणों की जाँच के बारे में काफ़ी जानते हैं और ये धूम्रपान से कम हानिकारक हैं। जो लोग किसी और तरीक़े से धूम्रपान नहीं छोड़ सकते उन्हें इस के लिए तुरंत प्रोत्साहित किए जाने की ज़रूरत है।
प्रश्न 3: क्या आप एहतियात के सिद्धांत को मानते हैं?
हम इस सिद्धांत को मानते हैं और इसकी सराहना करते हैं। इस का मतलब है कि पहचाने गए बड़े ख़तरे की तुलना में ऐसे छोटे ख़तरे को स्वीकार करना जिस के बारे में जानकारी नहीं है।
हम जानते हैं कि पहचाना गया बड़ा ख़तरा तंबाकू और धूम्रपान दुनिया भर में लाखों लोगों की मृत्यु की वजह बन रहा है।
दूसरी तरफ़ वेप्स के ऐसे भी अध्ययन हुए हैं जिन से नुक्सान बहुत कम होने का पता चला है। उन अध्ययनों को हम क्यों ना देखें?
प्रश्न 4: ई-सिगरेट एक ऐसा उपकरण है जिस में निकोटिन होता है जिस की वजह से ये हानिकारक है। क्या ये सही है?
ये धूम्रपान छोड़ने के इच्छुक लोगों की मदद के लिए निकोटिन प्रतिस्थापन थेरेपी है। इस तरह की थेरेपी का टी.वी. और इंटरनेट पर विज्ञापन किया जाता है। अगर निकोटिन ही समस्या की वजह है तो ये तो एनआरटी जैसी थेरेपी में भी मौजूद होता है।
इतना ही नहीं केवल निकोटिन कैंसरजनक नहीं होता। ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जिसमें कहा गया हो कि निकोटिन से कैंसर होता है। पारम्परिक सिगरेट में तंबाकू जलने से टार पैदा होता है जिस की वजह से फेफड़े का कैंसर होता है। लेकिन ई-सिगरेट में कुछ जलता नहीं है। इसे वेप कहा जाता है क्योंकि इस में एक तरल पदार्थ होता है जो गर्मी से वाष्पित होता है और भाप बनती है।
प्रश्न 5: अध्ययनों से पता चलता है कि ई-सिगरेट पीने वाले दोहरा उपयोग करते हैं। वे पारम्परिक सिगरेट भी पीते रहते हैं?
अगर धूम्रपान छोड़ने के लिए निकोटिन गम या पैच का इस्तेमाल किया जाता है तब भी इस का दोहरा इस्तेमाल होता है। दोहरा उपयोग धूम्रपान छोड़ने की प्रक्रिया के दौरान किया जाता है। अगर कोई लंबे समय तक इस प्रक्रिया में रहे तब ये एक समस्या है।
लत छुड़ाने वाली थेरेपी में दोहरे उपयोग से हमेशा परिणाम हासिल होते हैं। एक समय के बाद धूम्रपान पर निर्भरता कम होने लगती है। बाद में पूरी तरह सकारात्मक बदलाव मिलता है। हालांकि ये लत के स्तर और व्यक्ति पर निर्भर करता है।
प्रश्न 7: कार्यकर्ताओं का कहना है कि नुक्सान कम करने की बजाय नुक्सान को पूरी तरह ख़त्म किया जाना चाहिए। आप इस बारे में क्या कहते हैं?
2010 से 2017 के बीच धूम्रपान में आई कमी सिर्फ़ 6 प्रतिशत है। धूम्रपान करने वालों की संख्या की बात की जाए तो इसमें आई कमी भी उल्लेखनीय नहीं है। इतनी कम दर के अनुसार धूम्रपान को पूरी तरह समाप्त करने में दशकों लग जाएंगे। इस समय के दौरान धूम्रपान करने वाले अरबों लोग समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाएँगे।
भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा तंबाकू उत्पादक देश है। चार करोड़ पचास लाख भारतीय आजीविका के लिए तंबाकू पर निर्भर हैं। तंबाकू कामगार को नया काम सिखाने या इस की खेती में विविधता लाने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए गए हैं।
इस तरह तंबाकू उन्मूलन एक अच्छा लेकिन काल्पनिक विचार है। क्या हमें धुएँ से नुक्सान उठाने वाले पैसिव स्मोकर और वर्तमान में धूम्रपान करने वाले लोगों को होने वाला नुक्सान कम नहीं करना चाहिए।
कोई भी उन्मूलन नीति के लिए अनुमानित वर्ष नहीं बताता। इस बारे में अधिकारी ख़ामोश हैं। अगर हम अंदाज़ा भी लगाएँ कि 2050 तक धूम्रपान से होने वाला नुक्सान समाप्त हो जाएगा तब भी क्या हम उस समय तक लोगों को धूम्रपान से मरने दें?
प्रश्न 7: क्या ई-सिगरेट में निकोटिन की अधिक मात्रा होती है?
वेप्स में निकोटिन घटाने के विकल्प हैं। पारम्परिक सिगरेट में ऐसे विकल्प नहीं है। ऐसे लोग हैं जिन्होंने 36 मिलीग्राम/मिलीलीटर से शुरुआत करके वेप के माध्यम से निकोटिन घटाकर 3 मिलीग्राम/मिलीलीटर कर दिया है।
इस से पहले पारम्परिक सिगरेट में वेपर्स का विकल्प मौजूद नहीं था। सकारात्मक बदलाव के लिए और अधिक विकल्प होने चाहिए।
विडंबना है कि पारम्परिक सिगरेट पर प्रतिबंध नहीं है लेकिन सकारात्मक बदलाव के लिए वेप जैसे इस के विकल्पों पर प्रतिबंध है। क्या हमें धूम्रपान करने वालों को पहले नुक्सान कम करने के और फिर धीरे-धीरे धूम्रपान छोड़ने के विकल्प उपलब्ध नहीं करवाने चाहिए।
प्रश्न 8: वेप का इतना विरोध क्यों किया जा रहा है?
पारम्परिक सिगरेट के व्यापार में शामिल विशाल कम्पनियों द्वारा विरोध किया जा रहा है। वेप्स और ई-सिगरेट से बाज़ार में उन का लाभ कम हो गया है। लोग धूम्रपान के नुक़्सान कम करने के लिए वेप्स चुन रहे हैं।
कार्यकर्ता भी इस का विरोध कर रहे हैं। दशकों से तंबाकू कंपनियाँ तंबाकू से होने वाले नुक्सान के बारे में सूचना छिपाने की कोशिशें कर रही हैं और कभी कुछ ख़ुश्बू मिलाकर या कभी फ़िल्टर का आकार बढ़ाकर बस दिखाने भर के लिए बदलाव करके लोगों को धोख़ा दे रही हैं। इन से नुक्सान कम नहीं हुआ।
इस से तंबाकू नियन्त्रण करने वाले कार्यकर्ताओं की स्थिति कठिन हो गई है जो तंबाकू समस्या के किसी भी ग़ैर-फ़ार्मा समाधान के प्रति चौकन्ने हो गए हैं। ये कार्यकर्ता अब अपनी पारम्परिक सोच बदलने और नई तकनीक अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं।
हर उद्योग में तकनीक की वजह से बदलाव होता आया है। तंबाकू उद्योग का भी यही मामला है। वेप्स तंबाकू उद्योग में बदलाव ला रहे हैं क्योंकि ये पारम्परिक सिगरेट से कम नुक्सान दायक हैं। इसलिए वेप्स का इस्तेमाल करने वालों के अतिरिक्त हर कोई इन की निंदा कर रहा है।